सुनहरा संसार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 23 मार्च को शाम आठ बजे कोरोना को महामारी घोषित करते हुये सम्पूर्ण हिन्दुस्तान को 21 दिन के लिये लाॅक-डाऊन घोषित किये जाने का असर देश के साथ-साथ गत दिवश मध्यप्रदेश के उत्तर में स्थित जिला मुरैना में भी देखा गया | लेकिन उसके बाद अचानक ऐसा क्या हुआ कि मुस्तैदी से डटी पुलिस कर्तव्य विमूड़ हो गई !
जर, जौरु, जंगल,अवैध शराब और अवैध रेत आदि (इन सबके हालांकि अलग-अलग विभाग हैं, मगर रोकने की जिम्मेदारी केवल और केवल पुलिस की है) का निबटारा करने वाली मुरैना पुलिस की जिम्मेदारी कोरोना को फैलने से रोकने के लिए भी मुस्तैदी के साथ देखी गई | गली-गली, डगर-डगर और बाजारों तक में पुलिस मुस्तैद दिखी | बिला वजह और जरुरी काम के बिना तफरीह करने वाले लोंगों को कहीं डण्डे की चोट पर तो कहीं समझाइस के साथ समझाकर मुरैना पुलिस ने लोगों को अपने घर में रहने के लिए मजबूर कर दिया और अपने कर्तव्य का मुस्तैदी से निर्वहन किया | इसमें कोई दो-राय या किंतु-परंतु नहीं है कि पुलिस का रोल निश्चित ही एक लोक सेवक का दिखा | खाद्य पथार्थों की दुकानों पर उमड़ने वाली भीड़ को भी पुलिस ने नियंत्रित किया और बाजारों में अपनी उपस्थिति को बखूबी दर्ज कराया , परिणाम सामने आया कि एक तरफ खरीदारी कर रही जनता ने कोरोना की भयावाह को पुलिस की जुबानी समझा वहीं लालची, मुनाफाखोर और कालाबाजारी कथित व्यापारी पुलिस के खौफ के कारण अपनी हद और औकात में रहे |
मगर आज अचानक पाशा पलट गया न जाने क्यों मुरैना पुलिस ने कोरोना जैसी महामारी से मुरैना को कल तक बचाने की पुनित मुहीम से पल्ला झाड़ लिया, नतिजन बाजार में कालाबाजारी और लालची व्यापारियों की पौ-बारह हो गई, जमकर कालाबाजारी और मुनाफाखोरी की गई | सुबह साढ़े पांच बजे से खुली दुकानें देर शाम तक खुली रही! समुचित दूरी का नियम दम तोड़ता हुआ दिखाई दिया, पुलिस का कहीं दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं था | लिहाजा जो आटा कल तक 2200 रुपये कुंटल था आज खुलेआम 3800-3900 में बिका, ऐसी कोई खाद्य वस्तु नहीं थी जो डेढ़ से लेकर ढाई गुना मंहगी दर पर नहीं बिकी हो | जनता ने पुनः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आव्हान पर गत 22 मार्च की तरह आज भी लाॅक-डाऊन को पिकनिक और उत्सव की तरह मनाया , खुलेआम आम लोग बाजारों में घूमते हुये मौज-मस्ती मनाते हुये दिखे |
अब ये चिंता का विषय तो है ही साथ में अनुसंधान का भी विषय है कि कल तक मुरैना को अपना शहर और अपनी जमीन मानने वाली पुलिस आज कर्तव्य विमूण क्यों हुई और क्यों उसने कोरोना जैसी महाबिमारी की आशंका से थर्राये पूरी देश की तरह मुरैना और मुरैना की जनता को भगवान भरोसे छोड़ दिया? उम्मीद की जानी चाहिए कि चम्बल संभाग व जिले के आला अधिकारियों के साथ-साथ जनता के साथ मरने-जीने की कसम खाने वाले अस्तत्वहीन मुरैना के राजनीतिक नेता इस पर विचार करेंगे और गत दिवश लाॅक-डाऊन का खुलेआम उल्लघन कर रहे एक पूर्व विधायक के भाई और पुलिस के बीच हुई कथित झड़प से कुछ निस्कर्ष निकालेंगे | आम नागरिक और नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि तमाम शिकवा-शिकायतों के बावजूद पुलिस है तो हम सुरक्षित हैं। क्योंकि हर परेशानी और विपरीत परिस्थिति में आम जनता की सबसे बड़ी पैरोपकार पुलिस ही तो है।