स्वर्ण रेखा : मैं मैली थी मैली ही रही

 

अब स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन संवारेगा स्वर्ण रेखा को

 

ग्वालियर (मप्र) । ऐसा कहा जाता है कि अतीत में स्वर्ण रेखा नदी के अंदर लोहे की सांकल सहित एक हाथी चला गया तो हाथी के बंधी हुई लोहे की सांकल सोने की है गई थी। तभी से नदी के अंदर पारस पत्थर होने की अटकलें लगाई जाती रही हैं। नदी में पारस तो नहीं मिला लेकिन ये बात तय है कि स्वर्ण रेखा नदी के लिए लाए प्रोजेक्टों ने सोना खूब उगला। अब स्मार्ट सिटी ने स्मार्ट प्रोजेक्ट तैयार कर स्वर्ण रेखा के सौंदर्य को निखारने का बींड़ा उठाया है। ऐसे में देखना होगा कि  गंदे नाले का दंश झेल रही स्वर्ण रेखा नदी के दिन सवरते हैं या एक बार फिर ठगी जायेगी। 

 कभी अपने नीरव कल-कल जल के कारण शहर के लिए जीवन दायनी के रूप में पहचान रखने वाली स्वर्ण रेखा नदी पर एक बार फिर सौंदर्य के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करने की तैयारी की जा रही है। इसको लेकर प्राथमिक तौर पर फूलवाग के पास वाले आधे किलोमीटर क्षेत्र को संवारने को लेकर मीटिंग में हरी झंडी भी स्मार्ट सिटी को मिल गई है । यदि यहां सफल रहे तो ही हनुमान बांध से रानी लक्ष्मीबाई प्रतिमा स्थल तक नदी के दोनों ओर सड़क, वर्टिकल गार्डन, लाइटिंग और जालियां लगाकर सौंदर्य बढ़ाने के लिए स्वीकृति मिल सकेगी। इस प्रोजेक्ट पर अनुमानित खर्च 100 करोड़ होने की संभावना है ।  इसके लिए पहले नगर निगम, जल संसाधन और लोक निर्माण विभाग तत्पर थे, लेकिन इससे पहले स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन को सफलता मिल गई है। 

 

 खिताब से धोए हाथ 

 

धरती पर गिरते भूजल स्तर के बीच यह नदी शहर में भूजल स्तर को कंट्रोल करने में अहम भूमिका निभाती थी। इसको लेकर 2011-012 में वॉटर रीचार्ज के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ नदी का अवॉर्ड भी मिल चुका है। लेकिन सौंदर्य और स्वच्छता के नाम पर सीमेंटीकरण करने से शहर का भूजल स्तर रसातल में चला गया। पिछले दो दशक से स्वर्ण रेखा नदी के विकास के सपने दिखाकर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाय गए लेकिन उसकी बदहाली में किंचित मात्र बदलाव नहीं दिखा। 

 

काम ऐसा हो कि मिशाल बने

 

हनुमान बांध से शर्मा फार्म तक 13.6 किलोमीटर की इस नदी का सौंदर्य निखारने के नाम पर जल संसाधन विभाग और नगर निगम ने सपने दिखा कर अब तक करोड़ों रुपये बहा दिए मगर नाले में तब्दील स्वर्ण रेखा दोवारा नदी नहीं बन सकी, हां इसके नाम पर सोना खूब लूटा गया। इस बार नदी के उत्थान की कवायद स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन कर रहा है तो शायद  उद्धार हो जाए। 

 

इस तरह चला स्वर्ण का पहिया 

 स्वर्ण रेखा में सीमेंट कांक्रीटीकरण व दोनों और बाउंड्रीवाल के लिए वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 46 करोड़ की योजना मंजूर की गई।  2004-05 में वर्ल्ड बैंक से 1900 करोड़ की वाटर री-चार्जिंग योजना के तहत 38 करोड़ की योजना मंजूर हुई। उसके बाद 2014 में नदी में साफ पानी बहाकर नाव चलाने के नाम पर करीब 80 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं,। वहीं सीवर लाइन को नदी से अलग करने के 12 करोड़ की राशि मंजूर हुई मगर सीवर बंद नहीं हुआ।