कमल छोड़ कमलनाथ के हुए डॉ सतीश


सुनहरा संसार 


 


भाजपा ने जिस रणनीति के तहत कांग्रेस को सत्ता से अपदस्थ किया, उसी रणनीति को अपनाते हुए कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला और ग्वालियर के कद्दावर भाजपा नेता सतीश सिकरवार को कांग्रेसी बना लिया। इसका असर न सिर्फ ग्वालियर बल्कि चंबल की सीटों पर भी दिखाई देगा । 


ग्वालियर अंचल के युवा एवं तेज तर्रार भाजपा नेता डॉ.सतीश सिकरवार ने पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की मौजूदगी में मंगलवार को कांग्रेस का दामन थाम लिया। डॉ सिकरवार सोमवार को ग्वालियर से सैकड़ों समर्थकों के साथ भोपाल पहुंचे। कांग्रेस के संगठन प्रभारी चंद्र प्रभाष शेखर और पूर्व मंत्री रामनिवास रावत समेत कई वरिष्ठ नेता भी इस दौरान मौजूद थे। बता दें कि सिकरवार ने पिछला चुनाव ग्वालियर पूर्व से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में लड़ा था और कांग्रेस उम्मीदवार मुन्नालाल गोयल से हार गए थे। सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के साथ मुन्नालाल भी पार्टी में आ गए, शायद यही बात इस ऊर्जावान युवा नेता को खल गई और कांग्रेस का दामन थाम लिया।


 


गौरतलब है कि डॉ सतीश सिकरवार का परिवार मुरैना और ग्वालियर में भाजपा का कद्दावर परिवार माना जाता रहा है। इनके पिता और भाई मुरैना की सुमावली सीट से विधायक रहे, भाई जिला पंचायत अध्यक्ष भी बना, स्वयं सतीश सिकरवार नगर निगम ग्वालियर में लगातार पार्षद रहे। यही नहीं इनकी पत्नी शोभा सिकरवार भी पार्षद चुनी गई। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ऐसे जुझारू नेता का पार्टी से जाना दोनों ही स्थिती में ठीक नहीं माना जा सकता है। 


दरअसल देखा जाए तो छात्र जीवन से राजनीति की शुरूआत करने वाले डॉ सतीश सिकरवार ने जो निर्णय लिया है उसकी पटकथा ताजा न होकर बर्षों की उपेक्षा और टीस का परिणाम है। मसलन उनके पिता गजराज सिंह सिकरवार को विधायकी से संतुष्ट रहना पड़ा, स्वयं सतीश सिकरवार निगम नेता की छवि से अभी तक नहीं निकल सके। वहीं जैसे तैसे प्रादेशिक राजनीति में आने के लिए पार्टी में जद्दोजहद कर  2018 में विधानसभा टिकट पाने में कामयाबी मिली तो कांग्रेस प्रत्याशी मुन्नालाल से शिकस्त का सामना करना पड़ा। अब ऐसे में उपचुनाव के दौरान सतीश मुन्नालाल का झंडा कैसे उठाते लिहाजा मंगलवार को कमल के सतीश कमलनाथ के हो गए।