?    कांग्रेस के लिए अमर बेल साबित हो गए मिस्टर बंटाढा़र


साभार गूगल


सुनहरा संसार


 

प्रदेश में सत्ता गवाने के बाद कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को जिस तरह कोरोना टास्क फोर्स में स्थान नहीं दिया, उसी तरह अब बैठकों से उन्हें और उनके समर्थकों को दूर रखा जा रहा है, उससे साफ है कि सत्ता छिनने के लिए कांग्रेस हाई कमान उन्हें ही दोषी मानता है, जबकि मिस्टर बंटाढार का ठप्पा उनपर पहले से ही लगा हुआ  है ऐसे में सवाल लाजिमी है कि क्या कांग्रेस के लिए अमर बेल साबित हो रहे है मिस्टर बंटाढा़र  |

 

प्रदेश कांग्रेस में  मुख्यमंत्री दिग्विजय से बड़ा नेता फिलहाल कोई नही है ,जिसके भरोसे कांग्रेस उप-चुनाव में भाजपा से मुकाबला कर सके |  लेेकिन 15 साल पहले उनके सिर पर मिस्टर बंटाढा़र का ताज ऐसा बंधा कि नर्मदा परिक्रमा और स्नान के बाद भी पीछा नहीं छोड़ रहा , यहि वजह थी कि विधानसभा चुनाव से उन्हें दूर रखा गया | वहीं कांग्रेस के सत्ता पर काबिज होते ही वह पूूूूरी तरह सक्रिय होकर स्वयं पॉवर पॉइंट की भूमिका में आ गए तथा सिंधिया एवं उनके खेेेेमे के मंत्रियों की जड़े खोदने में जुट गए ऐसे आरोप लगते रहे हैं , लेकिन उनका इस बार का दाव उल्टा पड़ गया और अब सोशल मीडिया आदि में उनका विरोधी खेमा  कांग्रेस के लिए अमर बेल साबित हो गए  , भस्मा... जैसे  आरोप लगा रहे हैं| यही वजह है कि संगठन पदाधिकारियों से लेकर कार्यकर्ताओं तक का मानना है कि प्रदेश की सत्ता से बाहर होने की बड़ी वजह दिग्विजय सिंह ही हैं। 



 गौर करने वाली बात है कि बीते कुछ दिनों से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के साथ हुई संगठन की बैठकों में दिग्विजय सिंह व उनके समर्थकों को नहीं बुलाया जा रहा है। यह बात अलग है कि 25 अप्रैल को ग्वालियर व चंबल संभाग के तहत आने वाली विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों को लेकर हुई बैठक में  दिग्विजय समर्थक डा. गोविन्द सिंह को बुलाया गया था, लेकिन  दिग्विजय सिंह से दूरी बनाए रखी गई।

 

खास बात यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद ग्वालियर-चंबल संभाग में सबसे अधिक कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह समर्थक हैं। इस अंचल के सिंधिया समर्थक विधायकों के इस्तीफा के बाद ग्वालियर-चंबल में शेष रहे कांग्रेस विधायकों में भी अधिकांश दिग्विजय सिंह के समर्थक है। उधर कांग्रेस के दिग्गज पूर्व मंत्री और पिछोर विधायक केपी सिंह को लेकर भी चर्चाएं गर्म है कि वह भी पाला बदल सकते हैं , सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के भाजपा में शामिल होने पर उन्होंने जो प्रतिक्रिया दी थी , वह भी उनकी मौन स्वीकृति को दर्शाती है |

कोरोना समाप्त होते ही प्रदेश में उप चुनावों की घोषणा संभावित है, और चौबीस में से सोलह सीट ग्वालियर-चंबल संभाग में हैं जिन पर चुनाव होगा, खास बात यह है कि इन सीटों पर सिंधिया का दवदवा रहा है,  लेकिन यह पहला मौका होगा जब कांग्रेस के विरुद्ध सिंधिया कमल दल की अगुवाई कर ग्वालियर-चंबल संभाग में चुनाव मैदान में होंगे।

 

सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद माना जा रहा था कि शायद अब कांग्रेस में गुटबाजी मिट जाएगी। इसकी वजह है प्रदेश के दोनों बड़े नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह में छोटे- बड़े भाई के संबंध , लेकिन सत्ता जाने के बाद शायद दोनों नेताओं के बीच अब संबंध उतने अच्छे नहीं रहे हैं। सूत्रों की माने तो गुटबाजी रोकने के लिए ही प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ को बयान जारी करना पड़ा कि प्रदेश में उपचुनाव को लेकर अभी किसी कोर कमेटी का गठन नहीं किया गया है। इस संबंध में आ रही खबरें भ्रामक है। अभी कोरोना का जंग जीतना सभी की प्राथमिकता है। कमलनाथ ने कहा कि पहले हम सब मिलकर इस महामारी पर विजय पा लें, उसके बाद उप चुनाव को लेकर कोई निर्णय लेंगे। वैसे भी दिग्विजय सिंह को प्रदेश में भाजपा द्वारा बंटाढार नाम दिया जा चुका ।