था गुरुर तुझे बहुत लंबे होने का ऐ सड़क,  मगर एक गरीब बेटी ने तुझे साइकिल से ही नाप दिया


सुनहरा संसार 


 


 


इस कोरोना वायरस की मार से जहां पूरा विश्व हलकान है और इससे निपटने के लिए सभी दल और लोग एक साथ मिलकर लड़ाई लड़ रहे है, वहीं मेरे मुल्क हिंदुस्तान में कोरोना के कहर पर सियासतदां घटिया सियासत कर इस महामारी में भी वोटों की राजनीति के नये-नये अवसर तलाश रहे हैं। वहीं एक जांबाज बेटी ने छोटी सी उम्र में अपने जुनून के आगे कोरोना को मात देने के साथ-साथ गरीबों की हिमायती सरकारों का असल चैहरा दुनिया के सामने उजागर कर दिया । 


उत्तर प्रदेश में फंसे शेष राज्य के मजदूरों को उनके गांव और घरों तक बसों द्वारा पहुंचाने को लेकर गत पांच दिनों से कोहराम मचा हुआ है और घटिया राजनीति के नये-नये उदाहरण और हथकंडे देश की जनता के सामने आ रहे हैं! कांग्रेस की महासचिव प्रियंका वाड्रा गांधी जहां प्रवासी लाचार और पैदल चल कर हजारों किमी का सफर तय करने वाले मजदूरों को एक हजार बसों द्वारा उनके गंतव्य तक पहुँचाने के लिए प्रयासरत हैं तो मुख्यमंत्री योगी और भारतीय जनता पार्टी इसमें कांग्रेस का घपला और धोखाधड़ी देख रही है। परिणाम सामने है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रियंका गांधी द्वारा भेजी गई एक हजार बसों के कागजातों में लगभग 867 कागजातों को ही बस के वैध कागजात माने बांकी के कागजात कार, एम्बुलेंस, टाटा मैजिक और मोटर सायकिल के बताये गये, लिहाजा प्रियंका गांधी पर तो सरकार ने रहम कर दिया मगर उनके निजी सचिव को लपेट लिया और धोखाधड़ी का मामला पुलिस में दर्ज करवाकर उनके सिर मढ़ दिया। आखिरकार प्रियंका गांधी और कांग्रेस द्वारा भेजी गई बस तीन दिनों तक उत्तर प्रदेश की विभिन्न सड़कों पर खाली खड़ी होकर वापिस अपने स्थानों पर रवाना हो गई। 


कोरोना वायरस के कहर से गत दो महिने से लाॅकडाउन की मार से हैरान, परैशान,भूखा-प्यासा और फटेहाल मजदूर सरकार व सरकारों की ड्रामेबाजी को न सिर्फ देख रहा है बल्कि टूटे हुये दिल से महसूस भी कर रहा है। देख तो देश भी रहा है मगर खुद ही तानाशाह की चाहत रखने वाला और अपने वोटों से तानाशाह बनाने वाला अधिकांस तबका चुप है, इस महा संकट में भी वो अपने नेता के खिलाफ न बोलना चाहता और न ही सुनना चाहता है। 


 


मगर सरकार और उस अधिकांश तबकों को समझ लेना चाहिए कि इस गौरवमयी राष्ट्र का मजदूर कभी भी मांगकर नहीं अपने परिश्रम की रुखी-सूखी रोटी खाता है और ऐसी-ऐसी मजदूरी करके जिसमें खुद की जान की बाजी लगानी पढ़ती है और निरंतर राष्ट्र का निर्माण करता रहता है। 


सरकारों की नाकारी और निर्लज्जता की तश्वीरें तो अब आम हो गई हैं, वहीं सरकारें किसी बेबस और लाचार मजदूर की चिंता नहीं करती ये मात्र 15 वर्ष की बेटी ज्योति कुमारी ने साबित कर दिया और साबित यह भी कर दिया कि देश का मजदूर लाचार और परैशान तो हो सकता है मगर थक नहीं सकता और अपने कर्तव्य से पीछे हट नहीं सकता। ज्योति के पिता बिहार निवासी मोहन पासवान हरियाणा के गुरुग्राम में आॅटो चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे कि एक दिन अचानक उनका ऐक्सीडेंट हो गया। उनकी देखभाल के लिये बेटी ज्योति को बिहार के दरभंगा जिले के सिरहुल्ली गांव से गुरुग्राम आना पढ़ा, इस बीच जो जहां है वहीं रहें का ऐलान के साथ देश लाॅकडाऊन हो गया। 


लगभग 50-52 लाॅकडाऊन के दिनों में पासवान के पास थोड़ा बहुत जो पैसा था वो खत्म हो गया। तब बेटी ने सायकिल से दरभंगा जाने की जिद की, उसकी जिद के सामने झुक कर पासवान ने कुछ पैसे कर्ज लेकर एक पुरानी सायकिल खरीदी। बेटी ज्योति ने कोई देरी न करते हुये पिता को पिछली सीट पर बैठाया और एक बैग साइकिल पर टांग कर गांव के रास्ते पर निकल पड़ी।


 कहते हैं कि 'हिम्मत ऐ मर्दा ते मददे खुदा' आठ दिन तक लगातार सायकिल से चलते हुये सैकड़ों मील का सफर तय करके वह छोटी सी बच्ची अपने विकलांग पिता को लेकर अपने गांव सिरहुल्ली पहुंच गई। उसने साबित कर दिया कि मजदूर इस कोरोना के कहर व सरकारों की बेरुखी से लाचार और परैशान तो हैं मगर उसकी बेबसी किसी के कंधों पर बोझ नहीं है,सलाम ऐसी जांबाज बेटी को जिसने छोटी सी उम्र में अपने जुनून के आगे कोरोना को मात देने के साथ-साथ गरीबों की हिमायती सरकारों का असल चैहरा दुनिया के सामने उजागर कर दिया ।