अपनी बच्चियों को बनाए इन महिला अधिकारियों की तरह दबंग ताकि हर चुनौती के लिए तैयार रहें
मासूम मुस्कान घर आंगन के लिए खुशियां  हैं  समाज के लिए प्रेम और विश्वास का पाठ है 

अपनी कुंठा से ज्वाला बनाने की भूल करने वाले,

 कहीं इसकी अगन में खुद खाक न हो जाएं

         प्रियंका दास.                               निधि निवेदिता 

 

               गर्ल्स चाइल्ड डे पर विशेष 

                  मप्र की लेडी सिंघम 

 

सुनहरा संसार - 

 घर आंगन में किलकारी बिखेरने वाली अपने बाबा की परियां साक्षात ममत्व और वात्सल्य की मिसाल बनकर समाज की संरचना में अहम भूमिका निभाती हैं। बेटी दिवस के अवसर पर समाज को समझना होगा कि स्त्री ही है जिसमें दया और करुणा का भाव है तो दंड और क्रोध की ज्वाला भी है। वह मजलूमों के लिए ढाल है तो आतताईयों के लिए तलवार बनने में भी उसे देर नहीं लगती।  स्त्री ही जिसे कभी दुर्गा तो कभी लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता रहा है। लेकिन समाज के अंदर ही स्वार्थवश कुछ ऐसी कुरीतियां और गंदी मानसिकता घर कर रही है। जिसके कारण संतति वृद्धि की अहम धुरी (स्त्री जाति) अपने आप को डरा हुआ और असहज महसूस कर रही है। सच कहा जाए तो आज के दौर में समाज का यह अहम वर्ग अपनो के बीच अपने को बचाने और स्थापित करने की जद्दोजहद में लगा। 

यह स्त्री वर्ग के ही सामर्थ्य की बात है कि तमाम बाधाओं के बावजूद पापा की परी बनकर घूमने वाली बेटियां अब दहलीज से बाहर सत्ता और शासन के दरवाजों पर दस्तक दे चुकी हैं। छोटे कस्बे से निकली बेटियां हों या मेट्रो सिटी की पेंपर्ड गर्ल दोनों ही आने वाली पीढ़ियों के लिए मानक स्थापित कर रही हैं। बचपन से पिता और माता के शासन में पली बढ़ीं ये बेटियां अब व्यवस्था तंत्र में पहुंचकर जनता तक योजनाओं को सही ढंग से पहुंचाने को कटिबद्ध हैं। पुरुषों के मुकाबले कहीं अधिक संवेदनशील ये महिला अधिकारी जनता की समस्या को न केवल दिमाग से बल्कि दिल से हल करने की कोशिश कर रही है। 

आज के हम कुछ ऐसी बेटियों के बारे बात कर रहे हैं, जिन्होंने मध्यप्रदेश में प्रशासनिक पदों पर रहकर अपने युवा जोश और जुनून से लॉ एंड ऑर्डर की ऐसी मिसाल पेश की है कि कानून को मजाक समझने वालों की रूह कांपती है और मजलूम उन्हें इंसाफ की देवी मानकर लेडी सिंघम और दुर्गा जैसे नामों से अलंकृत करने लगे हैं।  


        निधि निवेदिता (कलेक्टर ) 


झारखंड से निधि निवेदिता 2012 के बेच की IAS ऑफिसर हैं। हाल ही में राजगढ़ में लॉ एंड ऑर्डर के लिए उन्होंने जिस तरह से सामना किया है वह चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे पहले जब सिंगरौली जिले में जिला पंचायत सीईओ के तौर पर तैनात थीं, तब वहां के पंचायत सचिव ने घपला किया था. बिना शौचालय बनाए उसकी फोटो दिखा दी थी. उसके बाद उन्होंने सचिव से  उठक-बैठक तक करवाई थी।  कलेक्टर निवेदिता की संवेदनशीलता तब दिखाई दी जब एक लड़की कविता दांगी को  बी पॉजिटिव खून की जरूरत थी। फेसबुक पर पोस्ट देखकर निधि ने अस्पताल जाकर उस मासूम के लिए रक्तदान किया। 


           प्रियंका दास (कलेक्टर ) 


भारतीय प्रशासनिक सेवा के 2009 बैच की आईएएस अधिकारी प्रियंका दास कलकत्ता के मिडिल क्लास परिवार से आती है। लेकिन सिविल सेवा का  जुनून था जिससे उन्हें ये मुकाम हासिल हुआ। इस समय चंबल संभाग के मुरैना जिले की कलेक्टर हैं। जहां उन्होंने रेत माफियाओं और मिलावट खोरों की नाक में दम कर रखा है। उनका कहना है कि महिला अधिकारियों को लेकर आज भी लोगों की मानसिकता ज्यादा बदली नहीं है। इसके लिए जरूरी है हमारा सेल्फ कॉन्फिडेंस और निर्णय लेने की क्षमता, जिसके रहते हुए किसी भी परिस्थिति का आसानी सामना किया जा सकता है। शायद यही वजह है कि मुरैना जैसे जिले में मिलावटी दूध का कारोबार करने वाले एक दर्जन के करीब लोगों के खिलाफ रासुका की कार्रवाई करके सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। चर्चा तो यह भी है इसके बाद उन्हें इंदौर जैसे बड़े शहर की जिम्मेदारी मिलने वाली है। .  शिवानी गर्ग                                          प्रिया वर्मा 




          प्रिया वर्मा (डिप्टी कलेक्टर) 

डिप्टी कलेक्टर राजगढ़ प्रिया वर्मा इंदौर के मांगलिया गांव से हैं. 2014 में भी उन्होंने MPPSC की परीक्षा दी थी।  उसके बाद उनकी पोस्टिंग भैरवगढ़ जेल में बतौर जेलर हुई थी। लेकिन यह पद उन्हें ज्यादा रास नहीं आया। उसके बाद 2017 में उन्होंने फिर से परीक्षा दी, और प्रदेश में चौथी रैंक आई और सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के पद पर उनका चयन हुआ। राजगढ़ में भाजपा द्वारा किए गए प्रदर्शन के दौरान प्रिया वर्मा को  एक दिग्गज अधिकारी के तौर पर देश भर ने देखा, लेकिन इससे हटकर प्रिया की और भी खूबियां हैं, जैसे सबसे छोटी उम्र में बड़ी जिम्मेदारी। वहीं उनके ममत्व की बात करें तो बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रिया अभी अविवाहित हैं लेकिन कुपोषित बच्ची की जिम्मेदारी लेकर मां के दायित्व का निर्वाह भी कर रही है।

 


           शिवानी गर्ग (एसडीएम) 

 

आज की गुना जिले में पदस्थ एसडीएम शिवानी गर्ग कभी कैंसर विषय पर शोध करने वाली छात्रा थी। उन्हे प्रशासनिक सेवा के लिए उनके पड़ोसी भाई और मित्रों ने दी तो पहली बार में ही एमपीपीएससी फाइट कर डिप्टी कलेक्टर की कुर्सी हांसिल कर ली । जिनके खोफ से मिलावटखोरों  और अतिक्रमणकारियों में इतना भय बैठ गया है कि वो शिवानी के स्थानांतरण की दुआएं करते हैं। वहीं एसडीएम की जन हितेशी  मुहिम से गुना की जनता इतनी खुश है कि उन्हें भवानी, लेडी सिंघम और दुर्गा जैसे अनेक  नामों से संबोधित करती है। 


 


दीपशिखा भगत.                      जयति सिंह 


           जयति सिंह (एसडीएम) 


ग्वालियर जिला स्थित मुरार  एसडीएम जयति सिंह 2016 बैच की आईएएस अधिकारी मूलत: उत्तर प्रदेश से हैं। जहां भी इनकी पोस्टिंग हुई वहां उन्होंने अपनी कार्यकुशलता से एक अलग पहचान बनाई है। वर्तमान में उन्होंने मिलवाटखोरों और अवैध शराब के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। आम लोगों के लिए इंसाफ पसंद जयति सिंह ने इससे पहले डबरा एसडीएम रहते हुए अवैध उत्खनन पर लगाम लगाने के लिए रातों को छापामार कार्रवाई करके माफियाओं की नींद हराम कर दी थी। वर्तमान में जयति सिंह मुरार एसडीएम के अलावा कलेक्टर अनुराग चौधरी द्वारा लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई पिंक सेल की प्रभारी भी है जिसके तहत जयति स्त्री सुरक्षा के अलावा स्कूलों में जाकर छात्राओं को सेल्फ डिफेंस सिखाकर मजबूत बनाने का काम भी कर रही है। 


         दीपशिखा भगत (एसडीएम) 



एसडीएम दीपशिखा भगत जबलपुर के शिक्षित परिवार से आती है। उनके पिता शीतल राम भगत गन कैरेज फैक्ट्री में सर्विस करते थे। वे छह बहनें हैं और सभी शासकीय सेवा में हैं। दीपशिखा की पहली पोस्टिंग ग्वालियर में हुई, जहां उन्हें 2 अप्रैल के चैलेंजिंग आंदोलन का कुशलता सामना किया। इसके बाद महू जमाहर में अवैध रूप से काला सोना (बीटी मेटल) उगलने वाले रसूखदार लोगों के क्रेशरों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करके सभी चौंका दिया। वर्तमान एसडीएम पद के अलावा कलेक्टर द्वारा उन्हें जिम्मेदारी भी सौंपी गई है, जिसके तहत मिलावट खोरी और कालाबाजारी पर उनका चाबुक जारी है।