मेला रंगमंच पर हुई वीर बुंदेला हरदौल और साधु व सुंदरी नाटकों की प्रस्तुति
सुनहरा संसार -
ग्वालियर। घरेलू राजनीतिक षड़यंत्र के कारण एक भाई अपने ही भाई और भाभी के बीच अवैध संबंधों का दुष्प्रचार करता है। इससे दुःखी होकर वह नारी सम्मान की खातिर जहर तक खा लेता है। यह कहानी है लोक नाट्य 'वीर बुंदेला हरदौल' की। जिसका मंचन मेला रंगमंच पर बुधवार को अद्भुत कला एवं विज्ञान मंच ग्वालियर द्वारा किया गया। इसी कड़ी में दूसरे नाटक 'साधु व सुंदरी' का मंचन बुंदेलखंड नाट्यकला समिति झांसी द्वारा किया गया।
नाट्य मंचन से पहले व्यापार मेला के संचालक शील खत्री के साथ अमित चितवन, अशोक सेंगर, गीतांजलि आदि ने मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित किया। सांस्कृतिक संयोजक नवीन परांडे, यामिनी परांडे, गायत्री मंडेलिया ने कलाकारों का स्वागत किया। 'वीर बुंदेला हरदौल' की इससे पहले उज्जैन कुंभ सहित 52 प्रस्तुति हो चुकी हैं। यह लोक नाट्यशैली में रची ओरछा की गाथा है। इसमें वीर, हास्य व करुण रस का मिश्रण है।
नाट्य मंचन के माध्यम से पत्रों द्वारा बताया गया है कि शाहजहां के मित्र ओरछा नरेश जुझार सिंह जूदेव के भाई हरदौल का पालन-पोषण उनकी भाभी चंपावती ने किया था। पारिवारिक षड़यंत्र के चलते पहाड़सिंह अपने भाई राजा जुझार सिंह के कान भरता है और रानी चंपावती व हरदौल के बीच अवैध संबंध होने का दुष्प्रचार करता है।
इस पर राजा, रानी से कहता है कि तू पतिव्रता है तो हरदौल को जहर दे दे। इसका पता हरदौल को चलता है तो वह अपनी भाभी की अस्मिता की खातिर हंसते-हंसते भोजन में जहर खा लेता है। हरदौल को आज भी देवतुल्य पूजा जाता है। चंपावती के प्रयासों के बावजूद हरदौल आजीवन अविवाहित रहकर भाई, भाभी, प्रजा और राज्य की सेवा करना चाहता है।
इन्होंने निभाए किरदार
इस नाटक में हरदौल की भूमिका प्रशांत चौहान ने निभाई। अन्य पात्रों में अजय तलरेजा, अंकित प्रजापति, ऋतुराज चव्हाण, सत्यवीर राजपूत, शिवम गुप्ता, पीयूष चव्हाण, संघमित्रा कौशिक आदि शामिल थे। सूत्रधार थे वीरू मौर।
गुरु का शिष्य को संदेश
संस्कृत नाटक 'भगवत अज्जुकम' का बुन्देली में रूपांतरित मेला रंगमंच पर मंचित दूसरा नाटक 'साधु व सुंदरी' बुंदेली श्वांग शैली पर आधारित हास्य नाटक है। इसमें बताया गया है कि एक शिष्य हमेशा खाने-पीने और मौजमस्ती की बात करता रहता है, जबकि उसका गुरु उसे अच्छी शिक्षा ग्रहण करने को कहता है। गुरु उससे सामाजिक परंपराओं का अनुसरण करने की बात करता है। इस नाटक में सांसारिकता छोड़ अध्यात्म की ओर जाने का संदेश दिया गया है। इसका निर्देशन हिमांशु द्विवेदी ने किया। इसमें महेंद्र वर्मा, राघवेंद्र, आकाश, सौरभ, शिवानी, निकिता, तरुण, योगेश, ईशान आदि ने अभिनय किया। इसके पहले इस नाटक का मंचन जीवाजी विवि ग्वालियर, झांसी, चंडीगढ़, गोरखपुर, जयपुर, कटनी में भी किया जा चुका है।