अपेक्षा और उपेक्षा के चक्रवात में फंसी कांग्रेस को युवा नेताओं से परहेज !

फाइल


सुनहरा संसार 


मध्य प्रदेश में कांग्रेस अपेक्षा और उपेक्षा के चक्रवात में खुद ब खुद फंसती चली जा रही है। यहां दो दिग्गज नेताओं के बीच छिड़ी जंग की आंच अब जमीनी स्तर पर नजर आने लगी है। इसको लेकर कार्यकर्ता अपनी ही पार्टी की नीति और नियत पर सवाल उठा रहे हैं, वो भी ऐसे समय में जब प्रदेश में निकाय चुनाव की दुंधवी बजने वाली है। 



ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा वचनपत्र को लेकर सड़क पर उतरने के बयान पर मुख्यमंत्री द्वारा पलटवार के बाद न सिर्फ प्रदेश की सियासत गर्मा गई है बल्कि सिंधिया समर्थक मुखर होकर अपने ही मुख्यमंत्री को " एक व्यक्ति एक पद" की याद दिला रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ मंत्री बयान दे रहे हैं कि जिन्हें पार्टी के बजाय व्यक्ति में आस्था है, वह पार्टी छोड़ दें। इधर सिंधिया समर्थक मंत्री प्रद्युमन सिंह ने भी कह दिया कि जरूरत पड़ी तो सड़क पर केवल महाराज नहीं कांग्रेस का प्रत्येक सिपाही उतरेगा। इसी बीच प्रदेश की एक महिला पदाधिकारी ने सिंधिया को कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाने की सलाह दी , तो उससे एक कदम आगे बढ़कर शिवपुरी जिला कांग्रेस के नाम से बैनर लगाकर मुख्यमंत्री कमलनाथ पर कटाक्ष किया कि एक व्यक्ति एक पद का फार्मूला क्यों याद नहीं आ रहा?

दरअसल इस हंगामे के पीछे गौर करने वाली बात यह है कि आज की स्थिति में प्रदेश कांग्रेस में मुख्य रूप से तीन ही कद्दावर नेता हैं कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया। जिसमें कमलनाथ मुख्यमंत्री हैं तो दिग्विजय सिंह की पर्दे के पीछे से सरकार में भागीदारी किसी से छिपी नहीं है, वहीं चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद भी युवा नेता सिंधिया के हाथ कुछ नहीं लगा। जबकि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास सिंधिया को छोड़कर ऐसा कोई चेहरा नहीं था जिसके दम पर 15 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा से मुकाबला किया जा सके। यही वजह थी कि कमलनाथ को प्रदेशाध्यक्ष तो सिंधिया को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया। नतीजतन जो  कांग्रेस मुकाबले से घबरा रही थी वह सिंधिया की निश्पक्ष और निर्विरोध छवि के कारण सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही। इसके लिए सिंधिया की हौसला अफजाई करने के बजाय उपेक्षाओं के सिलसिले ने जोर पकड़ लिया ।

शुरुआती दौर में लगा था कि सिंधिया और कमलनाथ की जोड़ी प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी पर विराम लगाकर युवाओं को आगे आने का मौका देगी। लेकिन सूत्रों की मानें तो हुआ इसके उलट फ्रंट से कमलनाथ तो बैक से दिग्गी ने सिंधिया को अलग-थलग करने का मोर्चा संभाल लिया। पूर्व में भी ऐसे ही हालात बने थे जब सिंधिया के पिता स्व. माधवराव सिंधिया द्वारा पार्टी बनाई गई थी। लेकिन कांग्रेस की स्थिति में तब और अब जमीन आसमान का अंतर है, यह बात कांग्रेस जितनी जल्दी समझ लेगी उतना उसके लिए फायदेमंद साबित होगा। हालांकि यह बात निकल कर आ रही है कि 15 दिन में प्रदेश कांग्रेस में बहुत बड़ा फेरबदल होने जा रहा है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले चुनाव में निकायों पर फतह कांग्रेस के लिए दूर की कौड़ी साबित होना तय है। 

 

 युवाओं को आगे लाने से कांग्रेस को परहेज !

 

प्रदेश में सिंधिया को रोकने के लिए चली जा रही चालें  और हाईकमान द्वारा आंखों पर पट्टी बांध कर अनिर्णय की स्थिति या यों कहें कि मोन को देखते हुए  इतना तो कहा ही जा सकता है कि कांग्रेस चंद मुड्ड नेताओं तक सिमट कर रह गई है। यही वजह है कि समूचे राष्ट्र पर राज्य करने वाली कांग्रेस केन्द्र में न सिर्फ 10 साल से सत्ता से दूर है बल्कि मजबूत विपक्ष तक नहीं दे पा रही है। वहीं राज्यों में भी स्थिति शून्य पर जा अटकी, दिल्ली और यूपी इस बात के जीवंत उदाहरण है। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि राजनीतिक नजरिये से कांग्रेस में युवाओं का भविष्य फिलहाल ठीक नहीं है।