शून्य से शिखर तक का प्रयास हूँ मैं,
जब चहुँओर अंधकार दिखे तो प्रकाश हूँ मैं,
जब उम्मीदे दामन छोड़े तो सब की एक आस हूँ मैं,
कौन कहता है हम अबला हैं,
इस सृष्टि जगत की सबल विश्वास हूँ मै...
आज महिला दिवस पर हम ऐसी महिला का जिक्र करने जा रहे हैं, जिन्होंने महिला सशक्तिकरण की नई परिभाषा गढ़ी और पुरुष प्रधान समाज की तमाम बंदिशों को चुनौती देते हुए अपनी राह खुद बनाई।
जी हां हम बात कर रहे हैं जीवाजी विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो संगीता शुक्ला की, ये ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों में हर बार अपने आप को साबित किया और समाज के सामने मिशाल पेश की, कि यदि अवसर मिले तो स्त्री किसी भी स्तर पर पुरुष के कमतर नहीं है।
उनकी कुशल कार्यशैली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुरजोर विरोधियों के बीच उन्होंने न सिर्फ यूनिवर्सिटी को नए सौंपान दिए बल्कि लगातार दूसरा कार्यकाल करके प्रदेश की प्रथम महिला कुलपति होने का खिताब हासिल किया और दूसरी बार मप्र विश्वविद्यालय की स्थाई समिति के अध्यक्ष पद से भी नवाजा गया है । एक समय था जब इन्हें पदयुचित करने के लिए षड्यंत्र के तहत भोपाल से दिल्ली तक शिकायतों का दौर भी चलाया गया । मगर उन्होंने अपनी दूरगामी सोच और मंजिल को पाने के जुनून में विरोध के विपरीत बड़ी लकीर खींच कर स्वयं को साबित करते हुए समाज के सामने एक बैहतर उदाहरण पेश किया, महिला दिवस पर ऐसी काबलियत को हमारा सलाम।