कैडर वेश पार्टी में बगावती स्वरों के बीच मंत्रीमंडल का गठन !


सुनहरा संसार 


 


मध्यप्रदेश में 15 साल बाद सिंधिया का चैहरा दिखाकर बनी कांग्रेस सरकार सिंधिया की बेरुखी के बाद भाजपा में शामिल होते ही औंधे मुह गिर गई। वहीं महाराज की कृपा से शिवराज की मुख्यमंत्री के रूप में फिर से ताजपोशी भी हो गई। लेकिन इस बार उनकी राह में उन्ही के संकटमोचक रोड़ा बन गए हैं, शायद यही वजह है कि केडरवेश पार्टी में मंत्रीमंडल गठन को लेकर लगातार दिल्ली भोपाल मैराथन होने के बाद मंत्रीमंडल के गठन की राह आसान हुई है। 


अब तक के घटनाक्रम पर नजर डालें तो साफ नजर आ रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौथी बार सत्ता में आने के बाद अब तक सुरक्षित अनुभव नहीं कर रहे हैं। उनकी सौ दिन की सरकार जैसे-तैसे पांच मंत्रियों के सहारे चल रही है लेकिन उसे गति देने वाला 'एक्सीलेटर' उनके हाथ में नहीं दिखाई दे रहा है, प्रदेश भाजपा के दिग्गज नेताओं का विरोध तथा बार-बार टलता मंत्रीमंडल का गठन इस ओर ही इशारा करता है। 


काबिले गौर है कि अभी हाल ही में शिवराज सिंह चौहान मंत्रियों की सूची लेकर दिल्ली पहुंचे जिसको तर्जीह देने के बजाय नये लोगों को मौका देने की बात कह कर उनकी सूची को दरकिनार कर दिया गया । इस बीच शिवराज सिंह के संकट मोचक माने जाने वाले गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को भी दिल्ली तलब किया गया था । इस घटनाक्रम के बाद सीएम शिवराज सिंह को हटाए जाने की अटकलें लगने लगीं। यही नहीं इस तरह की अटकलें मीडिया की सुर्खियां तक बन गईं । हद तो तब हो गई जब सोशल मीडिया केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को प्रदेश की कमान सौंपने की बकालत तक करने लगा। 


भाजपा के अंदरूनी गलियारों से छनकर आ रही खबरों की मानें तो शिवराज सिंह के संकट मोचन और मौजूदा गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ही अब उनकी राह की सबसे बड़ी बाधा बन रहे हैं।


दरअसल कांग्रेस का तख्तापलट कर भाजपा को सत्तारूढ़ कराने में उनके किरदार के चलते वे इस फिराक में हैं कि यदि उन्हें विजयवर्गीय और सिंधिया का समर्थन मिल जाये तो वे शिवराज का ताज अपने सर पर सजा लें। 


डॉ मिश्रा को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का भी आशीर्वाद प्राप्त है। बता दें कि डेढ़ साल पहले मप्र के दौरे पर भोपाल आये अमित शाह डॉ मिश्र का आतिथ्य पहले ही स्वीकार चुके हैं।


 


    फिर आई नरेंद्र सिंह तोमर की याद


प्रदेश का सिरमौर बनने की चाह में नरोत्तम मिश्रा के बड़ते कदमों को रोकने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कुछ दिनों पहले उनके बंगले पर मिलने भी गए, जिसने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी लेकिन शिवराज सिंह ने ये कहकर विराम लगा दिया कि " मैं मुख्यमंत्री हूं और वह गृहमंत्री व्यवस्थाओं पर चर्चा के लिए गए थे" लेकिन इस घटनाक्रम के बाद कयास शुरू हो गए कि सरकार में सब कुछ ठीक तो नहीं चल रहा है। वहीं कुछ समय पहले शिवराज सिंह ने पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा से भी मुलाकात की थी। 


सूत्रों की मानें तो जब बात बनते नहीं दिखी तब शिवराज सिंह ने अपने पुराने मित्र केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की ओर रुख किया और यकायक नरेंद्र सिंह तोमर का नाम सामने आ गया। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि श्री तोमर का कद देश के दिग्गज नेताओं में शुमार है और प्रदेश भाजपा में उनका विरोध करने हिम्मत फिलहाल तो नहीं है, लिहाजा नरोत्तम मिश्रा ने भी अपने कदम पीछे खींच लिए। वहीं शांत रहने वाले और महल के करीबी माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने इस विरोध पर विराम लगाने के लिए कांग्रेस से भाजपा में आए सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे कर दिया। सिंधिया द्वारा डिप्टी सीएम के लिए तुलसी सिलावट के नाम को फिर से आगे करना इसी नजरिए से देखा जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि इस सरकार में दो डिप्टी सीएम के नाम पर सहमति बन गई है, जिसमें नरोत्तम मिश्रा और तुलसी सिलावट शामिल हैं। 


 


                 मुगालता क्यूं है 


सभी जानते हैं कि कांग्रेस की सरकार गिराने में प्रदेश भाजपा के नेताओं का रोल पहरेदार से ज्यादा नहीं रहा । वास्तव में सिंधिया की उपेक्षाओं से कांग्रेस की ये दुर्गति हुई। क्योंकि चुनाव सिंधिया के चैहरे पर और सरकार में प्रत्यक्ष कमलनाथ और अप्रत्यक्ष रूप से दिग्विजय सिंह का आधिपत्य कांग्रेस की सत्ता के पतन का मूल कारण रहा है। सच भी यही है कि ये राजपरिवार अपने सम्मान से समझौता नहीं करता, ऐसे में बहकावे में आकर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा सिंधिया को सड़क पर उतने के लिए ललकारना मंहगा साबित हुआ। इसे देर से ही सही कमलनाथ ने भी स्वीकार किया। ऐसे में सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों का भाजपा में शामिल होना अप्रत्याशित जरूर था मगर प्रादेशिक स्तर पर भाजपा की भूमिका नगण्य थी वर्ना केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को अॉप्रेशन के लिए आगे नहीं आना पड़ता, जिसकी पटकथा गुजरात के गायकवाड़ घराने से लिखी गई थी। 


             संकट में संकटमोचन! 


राजनीतिक गलियारों की माने तो शिवराज सिंह चौहान डिप्टी सीएम न बनाए जाने से क्षुब्ध अपने संकटमोचन से ज्यादा हलकान है। काफी मान- मनुअल के बाद भी श्री मिश्रा हैं कि पीछे हटने को तैयार नहीं है, और वह दिल्ली में डटे हैं। इधर खबर आ रही है कि मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सीएम उनसे गृह मंत्रालय लेकर किसी अन्य को जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं। यदि ऐसा होता है तो नरोत्तम मिश्रा के कद पर ब्रेक माना जायेगा, फिलहाल जानकारी आ रही है कि मंत्रिमंडल के नामों को लेकर सहमति बन गई है और 2 जुलाई को राज्यपाल आनंदी बेन पटेल शपथ दिलाएंगी।