कब जागेगा समाज ? " खून के लोथडे के समान दुधमुही भी महफूज नहीं "

सांकेतिक


              जिंदगी की जंग में न प्रीत है न प्यार है 

              जिधर देखो उधर बस हवस का व्यापार है 

 

 

सुनहरा संसार -


जिस भारत भूमि में स्त्री जाति को दुर्गा और लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है, वहां यौन हिंसा के मामले में पशुओं से गिरी निम्नतम घटनाओं के बाद जिस तरह की समाज में तस्वीर उभर रही है, उसने  बरवस समाज के सामने एक सवाल ला खड़ा किया है कि आखिर स्त्री जाति कहां महफूज है, हम किस तरह का समाज गढ़ रहे हैं। जो न पाश्चात्य शेली के ही अनुकूल बन सका और न ही हमारी सनातन सभ्यता के मुताबिक स्त्री की भावना और गरिमा का सम्मान रख सका। शायद यही वजह है कि आज दुधमही से लेकर वृद्धा और विक्षिप्त तक आधी आबादी अपने अस्तित्व को लेकर पुरुष समाज से डर और घृणा का भाव रखने को मजबूर है। 


           मैं भी तुम्हारी तरह इंशान हूं यारों 

           स्नेह सौंदर्य की पहचान हूं यारों 

           क्या चंचलता अपराध है यारों 

           गंदी हवस की खातिर यारो

           ईश्वर के वरदान को

           बेवजह तुम यूं न मारो


 

पिछले दिनों ग्वालियर की अदालत ने ऐसे बाप बेटे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जिन्होंने अपने ही कुल की लाज को एक बार नहीं अनेक बार तार-तार किया। दिल दिमाग को झकझोर देने वाली इस घटना में जो बात सामने आई है उसके मुताबिक एक बेटी को उसका  बाप  लगातार अपनी हवस का शिकार बनाता रहा और जब ये बात युवती के भाई को पता चली तो उसने राखी के बंधन को निभाने के बजाय उसे वासना का सामान बना लिया। चूंकि बेटी की मां की बहुत पहले ही मौत हो चुकी थी, इसलिए जब उसने ये बात अपनी परिवारिक भाभियों को बताई तब कहीं जाकर इन विक्षिप्त हवसियों की घिनौनी हकीकत सामने आई। इसी तरह का मामला हरियाणा के पलवल से सामने आया, जहां बाप समान चाचा अपने दूर के रिश्तेदार के साथ मिलकर अपनी 13 वर्षीय भतीजी के साथ डरा धमका कर कई दिनों तक गैंग रेप करता रहा। 

वहीं इंदौर से एक खबर आई, जिसमें 19 वर्षीय ट्यूशन टीचर ने अपने यहां पढ़ने आने वाली अबोध बालिकाओं को निर्वस्त्र करके उनके अंदरूनी अंगों में पेंसिल डाल कर वीडियो बनाया और अपने बॉयफ्रेंड को भेज दिया। हालांकि पुलिस ने ट्यूशन टीचर और उसके बॉयफ्रेंड के खिलाफ यौन हिंसा और पॉस्को एक्ट के तहत कार्रवाई करके उन्हें जेल भेज दिया। इससे हटकर कुछ दिन पहले बुलंदशहर में  झारखंड की एक युवती का  खुलेआम पशुओं की तरह सौदा किया जा रहा था, और पुरुष क्रूरता की शिकार युवती अपनी बेबसी और लाचारी पर आंसू बहा रही थी। ऊपर वाले का रहम था कि उसके दर्द को किसी ने समझा और पुलिस को सूचना दी तब कहीं जाकर दरिंदों के हाथों से वह युवती बच सकी, इसमें हैरान कर देने वाली बात यह है कि यहां स्त्री को बेचने वाली भी स्त्रीं ही थीं । वहीं कुछ समय पहले हैदराबाद में पशु डॉक्टर के साथ हुई दरिंदगी और हत्या ने एक बार फिर निर्भया के साथ हुई क्रूर दरिंदगी की कभी न भूलने  वाली घटना को फिर दौहरा दिया। 

ये घटनाएं महज एक उदाहरण है इस बात का कि हम आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ वाली भूलभुलैया में इस कदर भटक गए कि अपने व्यवहार से पशुओं को भी पीछे छोड़ दिया। कितनी चिंताजनक बात है कि हमने अपने हाथों सामाजिक वर्जनाओं के बने मजबूत तानेबाने को इस हद तक तोड़ दिया कि समाज  " दिशा और दशा " से पूरी तरह भटक गया है।

गौर करने वाली बात है कि निर्भया के साथ हुई दरिंदगी के बाद कानून में बहुत हद तक बदलाव किया गया इसके बावजूद यौन हिंसा की जघन्य घटनाओं में कमी के बजाय वृद्धि और क्रूरता ही देखने में आ रही है, इसे समझना बहुत जरूरी है।

क्या कारण है कि अयाशी और दरिंदगी के शर्मसार कर देने वाले इस तरह के जघन्य अपराधों में राजनीतिक, शिक्षित उच्च वर्ग से लेकर निम्न तबके तक, हर स्तर पर स्त्री के मान और स्वाभिमान का मर्दन हो रहा है, इस बात पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। दुख होता है ये देखकर कि जिस भूमि का उद्घोष था " नारी तू नारायणी", जहां कन्या पूजन कर कार्य शुभ माना जाता था, वहां खून के लोथडे की मानिंद दुधमुही भी अब घर और समाज में फैले इंसानी भेड़ियों से महफूज नहीं हैं। स्त्री समानता की वकालत के बीच आज हर मां-बाप अपनी परी की सुरक्षा को लेकर बुरी तरह से भयभीत है, ये भय कब खत्म होगा, कोन करेगा ये सवाल हरेक जुबान पर गूंज रहा है। कुछ साल पहले मैने कन्या भ्रूण हत्या को लेकर स्टोरी लिखी थी " कोख में कत्ल " परंतु आज हालतों  को देखकर मैं ये तय नहीं कर पा रहा कि लोग इस तरह के कदम क्या इसीलिए उठाते हैं ?   

मैरी निजी राय है कि इस तरह की घटनाओं के लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार है "एकाकी और निरंकुश जीवन शैली" जिसमें समाजिक वर्जनाओं का कोई स्थान नहीं रहा है और दूसरा सबसे बड़ा कारण है इंटरनेट, जिसे बनाया तो गया था दुनिया की जानकारी के साथ - साथ बौद्धिक विकास के लिए मगर उसका सही उपयोग करने के बजाय लोगों ने ऐसे रास्तों को चुन लिया, जो उन्हें इंसानियत के बजाय पशुता की ओर ले जा रहे हैं, ऐसे लोग समाज और स्त्री जाति के लिए दिन ब दिन घातक होते जा रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि कानून के साथ - साथ समाज को भी अपनी भूमिका का ठीक से निर्वहन करना होगा, क्योंकि समाजिक भय और वर्जनाओं में वो ताकत है जो किसी को भी काबू में करने की हिम्मत रखती है। 

इसलिए अपनी संस्कृति और संस्कार बचाने के लिए आधुनिकता की जाली चादर को छोड़कर अपनों के भविष्य के लिए संस्कृति और संस्कारों की ओढ़नी ओढ़े, ताकि फिर कोई स्त्री अपने आप को अबला कहकर रुदन न करे।

 

( सामाजिक स्थिति पर ये मैरे निजी विचार हैं, यदि किसी को गलत लगे तो क्षमा करें)