नोकरी की चाह में युवा बेरोजगार और सरकार ओल्ड एज के भरोसे !

सुनहरा संसार 


मध्यप्रदेश सरकार आर्थिक तंगी के कारण सेवानिवृत्ति के मामले से निपटने के लिए कर्मचारियों की संविदा नियुक्ति पर विचार कर रही है। लेकिन सरकार के इस कदम से नोकरी की चाह में बैठे युवा बेरोजगारों पर जो असर पड़ेगा उसकी ओर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है। मार्च 2020 में अधिकारी तथा कर्मचारी मिलाकर लगभग आठ हजार व्यक्ति सेवानिवृत्त होने की कतार में हैं।


फाइल फोटो 

यह सच है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से खाली खजाने के कारण कमलनाथ सरकार मुश्किलों के दौर से जूझ रही है। वहीं केंद्र सरकार ने बजट में कटौती करके मुश्किलों में और इजाफा कर दिया ऐसे में आठ हजार लोगों की सेवानिवृत्ति को लेकर सरकार पशोपेश की स्थिति में है। इससे निपटने के लिए सरकार  कर्मचारियों की सेवा अवधि 62 से 65 साल के साथ ही संविदा नियुक्ति के मुद्दे पर भी विचार कर रही है।  ऐसा करने से सेवानिवृत्ति के देयकों से सरकार को फिलहाल राहत मिल जाएगी तथा हो सकता है कि कर्मचारियों के कम होने की वजह से कार्य प्रभावित होने वाली स्थिति से भी निपटने में आसानी हो। लेकिन इससे पहले शिवराज सरकार ने सेवा अवधि को 60 से 62 कर दिया , यदि अब फिर अवधि बढ़ाई जाती है या संविदा नियुक्ति पर उन्ही की वापसी की जाती है तो युवा बेरोजगारी का आलम क्या होगा, सरकार को इस पर भी विचार करना चाहिए। वर्तमान में ऐसे तमाम उदाहरण है जिनमें रिटायरमेंट की तैयारी में बैठे कर्मचारी काम पर ध्यान देने के बजाय समय पूरा करने के इंतजार में समय गुजार रहे हैं, ऐसे में सरकार की मंशानुरूप सरकारी योजनाओं में गुणवत्तात्मक परिणाम कैसे आएंगे यह समझने की बात है। सांकेतिक 

 

        बेरोजगारी के ग्राफ में होगी वृद्धि

कांग्रेस द्वारा सरकार में आने से पहले और आज तक बेरोजगारी को मुद्दा बनाया गया है तो वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी ने अभी हाल ही में बेरोजगारी को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए बयान दिया था कि, कुछ दिनों में देश के बेरोजगार डंडा मारेंगे। इधर मुख्यमंत्री कमलनाथ की भी प्राथमिकता में प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारी रही है, इसके बावजूद सरकार का  इस तरह का कदम युवाओं को हतोत्साहित करने वाला ही साबित होगा । 

   मिल सकती है बेरोजगारी पर बड़ी जीत 

चालू वित्त वर्ष में अनुमान के मुताबिक आठ हजार के आसपास कर्मचारी और अधिकारी रिटायरमेंट लेंगे, जिनमें से यदि पांच हजार ऐसे कर्मचारी रिटायर होते हैं, जिन पर 7वें वेतनमान पर ऐवरेज प्रतिव्यक्ति 70,000 रुपये प्रति माह के मान से सरकार अभी खर्च कर रही है। वहीं नई नियुक्ति पर सरकार को प्रतिव्यक्ति लगभग 20, हजार खर्च करना पडे़गा। इस हिसाब से  देखा जाए तो सरकार 5000 रिटायरमेंट के बदले कम से कम 15 से 17000 ऐसे युवाओं को एक साल में ही रोजगार दे सकती है जो ओवर एज की कगार पर नोकरी की आस में बैठे हैं । वहीं आधुनिक तकनीक एवं सोच वाले युवाओं को व्यवस्था में मौका मिलने से सरकारी कार्यों में गुणवत्ता के साथ गतिशीलता आना भी स्वाभाविक है। 

 

               अनुकंपा नियुक्ति अधर में 

सरकार आर्थिक तंगहाली में ऐसे रिटायर लोगों पर ही ध्यान केंद्रित कर रही है जो मन से अपनी सेवा को अलविदा कह चुके हैं। वहीं ऐसे हजारों युवा अनुकंपा नियुक्ति के रास्ते पर अपनी बारी के इंतजार में हैं जिनके सिर से सेवा में रहते मां या बाप का साया हट गया और भरण-पोषण का कोई जरिया नहीं बचा, फिर भी उनकी फाइलें अटकी पड़ी हैं । 

एक तरफ कंपल्सरी और दूसरी तरफ संविदा पर नियुक्ति.! 

 प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद फैसला लिया गया कि सेवा त्रुटि या पद के विरुद्ध आचरण करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की कुंडली बनाकर उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी जाए। वास्तव में देखा जाए तो इस पर अमल होने से कर्मचारियों में कर्तव्य वोध तो होता ही इसके अलावा रिक्त पदों पर कम खर्च में युवाओं को मौका देकर बेरोजगारी को भी कम किया जा सकता है , लेकिन सरकार आर्थिक तंगी का हवाला देकर संविदा पर युवाओं को अवसर देने के बजाय रिटायरों को ही रिपीट करती रहेगी तो युवाओं को रोजगार देने के वादे का क्या होगा।