एडिशनल टीसी अरविन्द सक्सेना के आने से मुख्यालय में रौनक मगर धींगामस्ती में खलल !


सुनहरा संसार 


मध्यप्रदेश परिवहन विभाग का मुख्यालय सालों से ग्वालियर में होते हुए यहां की रौनक कैंप कार्यालय ने छीन ली । शासन ने इसे गुलजार करने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया मगर अधिकारियों को ग्वालियर रास नहीं आया। एडिशनल टीसी अरविन्द सक्सेना के आने से लगता है कि मुख्यालय की रौनक भी लौटेगी और अधीनस्थों के काम करने का अंदाज भी बदलेगा।


 


 


प्राप्त जानकारी के अनुसार नवनियुक्त अतिरिक्त परिवहन आयुक्त अरविंद सक्सेना परिवहन विभाग में पदस्थी के साथ ही वे अपना सामान भरकर ग्वालियर में ड्यूटी पर आ जमे ताकि विभागीय कार्य करने में खलल न पड़े। विभागीय बोल-चाल में डिप्टी टीसी, के इस अंदाज से जहां आम पब्लिक खुश है वहीं विभागीय अमला हलकान है कि अब धींगामस्ती के बजाय ड्यूटी करना पड़ेगी। 


गौरतलब है कि मप्र गठन के बाद से परिवहन, एक्साइज और भू अभिलेख विभागों के मुख्यालय ग्वालियर में संचालित हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से स्थिति यह बन गई है कि अधिकारी इन विभागों में आने को तो लालायित रहते हैं मगर न जाने क्यों मुख्यालय में बैठने के बजाय भोपाल को पसंद करते हैं। नतीजे के तौर पर देखें तो कार्यालयों में अधिकारियों के न बैठने से अधीनस्थों की मनमानी के कारण प्रदेश भर के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है और कार्य की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।


परिवहन विभाग की बात करें तो तत्कालीन परिवहन आयुक्त एस एस लाल के बाद किसी भी परिवहन आयुक्त या अतिरिक्त परिवहन आयुक्त ने ग्वालियर मुख्यालय में रुचि नहीं दिखाई और नतीजा यह हुआ कि कैंप कार्यालय भोपाल अघोषित परिवहन मुख्यालय के रूप में अस्तित्व में आ गया। इस व्यवस्था के पीछे अधिकारी जो भी दलील दें, मगर वास्तविकता यह है कि सुधार के दावे - वादों के बीच कैंप कार्यालय में विभाग प्रमुखों ने ठिकाना बना लिया तो ग्वालियर स्थित परिवहन मुख्यालय में पदस्थ और अटेच अधिकारियों की धींगामस्ती ने अड्डा जमा लिया। लेकिन अब अपनी बैहतर कार्यशैली के लिए प्रथक पहचान रखने वाले आईपीएस अरविन्द सक्सेना के रूप में एक ऊर्जावान अधिकारी परिवहन विभाग को मिला है, जो मुख्यालय में 10 से 5 ड्यूटी न सिर्फ कर्मचारियों से ले रहे हैं बल्कि स्वयं कार्यालय में 8 बजे तक बैठकर लंबित काम निपटाते हैं। उम्मीद है कि उनके प्रयास विभाग की खोई हुई पहचान को वापस लाने में कारगर साबित होंगे। 


   सुधार कहने से नहीं करने से होता है 


लंबे समय बाद अब विभाग को अरविन्द सक्सेना के रूप में ऐसा अधिकारी मिला है, जो टाइम पास के बजाय समय पर कार्य को महत्व दे रहे हैं। यही वजह है कि अन्य अधिकारियों की तरह कैंप कार्यालय का मोह त्याग कर उन्होंने कार्य सुधार के लिए मुख्यालय को चुना। ताज्जुब की बात यह है कि उनके आने के बाद चंद दिनों में सुधार भी दिखाई दे रहा है, वर्ना अब तक तो सुधार की बातें ही होती रही है।


मैदानी अमले को ही ले लें, तो जो स्टाफ अब तक कार्यालय में अटेच रहते हुए कभी कार्यालय में दिखाई नहीं देता था और अटेंडेंट पूरी रहती थी। वह अब न सिर्फ कार्यालय में रहकर अपना दायित्व निभा रहे हैं बल्कि हाजिरी रोजनामचा पर दस्तखत तक करने लगे हैं , एक बाबू तो यहां तक कहते सुने गए कि पूरी नोकरी में इतना काम नहीं किया जो अब करना पड़ रहा है।